Sunday, January 15, 2012

aaj bhi wo . . . . . .




आज वो कबूतरों के साथ खेल रही थी
और मैं चिड़ियों को दाना डाल रहा था.
आज कामवाली ने झाड़ू नहीं किया,
और मैं खुद को सवांर रहा था
आज वो खिड़की पे नहीं आई,
और मैं पड़ोसियों से बतिया रहा था
आज पड़ोसी का नया फ्रिज आया,
और मैं मटके का पानी पी रहा था
आज अखबार वाला  नहीं आया
और मैं उसको गालियाँ  दे  रहा था
जब अखबार वाला आता है
तो मैं सरकार को गालियाँ देता हूँ
आज फिर काले बादल घिर आये
और मैं फिर से रेनकोट  भूल गया
आज भी माँ स्कूल  आई थी
और मैं फिर टिफिन  भूला था
आज भी बच्चों  ने कुत्ते को पत्थर मारा
और मैं चुपचाप तमाशा देख रहा था
आज भी उसका इंतज़ार कर रहा हूँ
और वो है की आती नहीं
आज भी मैं  लिखता हूँ
पर कोई है की  समझता नहीं . . . .

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